दूसरी बार कोरोना संक्रमण: सुरक्षा कवच को भेद रहा है तो कैसे ख़त्म होगा वायरस?

Coronavirus (Covid-19) Health

एक बार कोरोना संक्रमण ठीक होने के बाद भी दोबारा फिर से संक्रमण होने का मामला कितना चिंताजनक है? यह सवाल इसलिए कि जब संक्रमण से ठीक हुए लोगों में फिर से संक्रमण होगा तब तो यह बीमारी दुनिया से कभी ख़त्म ही नहीं होगी! ऐसे में यदि आप कोरोना को वैक्सीन या ‘हर्ड इम्युनिटी’ से ख़त्म होने की बात सोच रहे हैं तो भी आशंका वही रहेगी कि क्या यह वायरस दुनिया से कभी ख़त्म होगा भी या नहीं! हर्ड इम्युनिटी का मतलब है कि जब अधिकतर लोग कोरोना से संक्रमित हो जाएँगे तो उनमें इस वायरस से लड़ने वाली इम्युनिटी यानी एंटीबॉडी विकसित हो जाएगी और फिर लोगों में संक्रमण नहीं फैल पाएगा। अब यदि संक्रमण से ठीक हुए व्यक्ति की इम्युनिटी यानी सुरक्षा कवच को यह वायरस भेद सकता है तो सवाल उठेंगे ही।

सवाल तो तभी से उठने लगे थे जब पहले ही कई ऐसे मामले आए जिनमें कोरोना संक्रमण से ठीक हुए लोगों में भी दोबारा संक्रमण की पुष्टि हुई। महामारी के शुरुआती हफ्तों में पहले चीन और फिर जापान और दक्षिण कोरिया में कुछ लोगों ने दो बार टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आने की बात कही थी। तब इससे और डर फैला था। बाद में जैसे-जैसे यह संक्रमण दूसरे देशों में फैलता गया वहाँ से भी ऐसी ही रिपोर्टें आने लगीं। 

अमेरिका भी इससे अछूता नहीं रहा। अमेरिका में भी ऐसे ही मामले आए हैं। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार लॉस एंजिलिस की कोरोना पीड़ित एक महिला को लगा कि वह ठीक हो गई हैं, लेकिन हफ़्तों बाद उनकी तबीयत फिर से ख़राब हो गई। उन्होंने जाँच कराई तो वह फिर से पॉजिटिव पाई गईं। 

न्यू जर्सी के एक डॉक्टर ने कहा कि ऐसे कई मरीज़ों में दूसरी बार संक्रमण के मामले आ रहे हैं और कई मामलों में तो पहले से ज़्यादा गंभीर स्थिति हो जाती है।

दुनिया में कोरोना संक्रमण के आए अभी क़रीब 7 महीने ही हुए हैं तो इस पर अभी ज़्यादा शोध नहीं हो पाया है। लेकिन जो केस सामने आए हैं उसमें पता चलता है कि दूसरी बार संक्रमण होने में हफ़्तों से लेकर महीनों तक लग सकता है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका की 37 साल की मेगन केंट 30 मार्च को कोरोना पॉजिटिव पाई गई थीं। 14 दिन के क्वॉरेंटीन के बाद ठीक होकर वह कार्यालय भी जाने लगी थीं, लेकिन बाद में तबीयत ख़राब हुई और 8 मई को जाँच में फिर से कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट आई। 

इस पर कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि हो सकता है कि केंट पूरी तरह ठीक नहीं हुई होंगी, उन्हें लगा होगा कि वह ठीक हो गईं लेकिन वायरस शरीर के किसी हिस्से में छिपा रह गया होगा और यह फिर से शरीर में फैल गया होगा। 

दक्षिण कोरिया में शोध

कई ऐसी रिपोर्टें भी रही हैं कि दूसरी बार वायरस के संक्रमण में दो महीने से भी ज़्यादा का समय लग जाता है। दक्षिण कोरिया के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र ने 285 ऐसे मामलों की जाँच की और पाया कि उनमें से कई दो महीने बाद दूसरी बार संक्रमित हुए थे और एक तो 82 दिन बाद संक्रमित हुआ था। इन सभी मामलों में से क़रीब आधे ऐसे मामले थे जिनमें दूसरी बार जाँच से पहले कोई लक्षण नहीं दिखे थे। हालाँकि, शोधकर्ताओं को दूसरी बार संक्रमित होने वाले लोगों में ऐसा केस नहीं मिला जिनसे दूसरे लोग संक्रमित हुए हों। रिपोर्ट के अनुसार, न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय में वायरोलॉजिस्ट एंजेला रासमुसेन ने भी कहा कि ऐसे केस नहीं मिले हैं। 

जो व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित होता है उसमें इम्युन सिस्टम यानी एंटीबॉडी बनती है और यही वायरस को ख़त्म करता है। लेकिन दोबारा संक्रमण होने की चिंता इसलिए बढ़ी है कि हाल के कुछ शोधों में पता चला है कि शरीर में बनी एंटीबॉडी धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ने लगती है।

जून में प्रकाशित एक शोध में पता चला कि बिना लक्षण वाले कोरोना संक्रमित लोगों में से 40 फ़ीसदी लोगों में तीन महीने के अंदर एंटीबॉडी इतनी कमज़ोर हो गई कि उसे डिटेक्ट करना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में संभव है कि कोरोना संक्रमण फिर से हो जाए। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार ऐसी ही रिपोर्ट एक अन्य शोध में भी आई है जो अभी प्रकाशित नहीं हुआ है। इसमें कहा गया है कि एंटीबॉडी में जो चीज वायरस के संक्रमण को रोकती है वह एक महीने में ही काफ़ी ज़्यादा कमज़ोर पड़ जाती है। हालाँकि इसके बावजूद तब तक उसमें इतनी क्षमता होती है कि कुछ हद तक वायरस से सुरक्षा प्रदान करे।

कुछ रिपोर्टें ऐसी भी आई हैं जिनमें कहा गया है कि आबादी के कुछ हिस्से में एक स्तर तक कोरोना से लड़ने वाला इम्युन सिस्टम पहले से ही बना हुआ है। सिंगापुर में ड्यूक एनयूएस मेडिकल स्कूल के वायरोलॉजिस्ट डॉ. एंटोनियो बर्तोलेती ने कहा, ‘SARS-CoV2 के ख़िलाफ़ पहले से मौजूद प्रतिरक्षा सामान्य आबादी में मौजूद है।’ यह इम्युनिटी सामान्य सर्दी-जुकाम जैसे फ़्लू होने पर बनी हो सकती है। 

हर्ड इम्युनिटी या वैक्सीन कितनी कारगर होगी?

अब शरीर में कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ बनी इम्युनिटी यानी एंटीबॉडी के समय के साथ कमज़ोर पड़ने की रिपोर्टों के बीच संकट कम होता नहीं दिख रहा है। पहले कहा जा रहा था कि हर्ड इम्युनिटी होने की स्थिति में या वैक्सीन बन जाने पर स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी, लेकिन एंटीबॉडी कमज़ोर पड़ने पर ऐसा शायद नहीं हो पाए। माना यह जाता रहा है कि एक समय जब अधिकतर लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण के ख़िलाफ़ एंटीबॉडी बन जाएगी तो फिर संक्रमण फैलना रुक जाएगा क्योंकि तब लोगों में मौजूद एंटीबॉडी वायरस को फैलने नहीं देगी। यही बात वैक्सीन के बारे में भी कही जाती रही है।

लेकिन कोरोना वायरस की जो वैक्सीन बनी है उसमें भी अभी तक यह साफ़ नहीं हो पाया है कि वह वैक्सीन शरीर में कितने लंबे समय तक इस वायरस के ख़िलाफ़ इम्युन सिस्टम को मज़बूत रखेगी। ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन के पहले चरण में सफल होने के दावों में भी इम्युनिटी की अवधि को लेकर कुछ साफ़ नहीं कहा गया है। वैक्सीन बनाने में लगी कई कंपनियाँ इस पर ट्रायल कर रही हैं कि आख़िर कितने समय तक यह वैक्सीन वायरस से सुरक्षा प्रदान करेगी। शोधकर्ता कोरोना वायरस से संक्रमित उन बंदरों को यह निर्धारित करने के लिए ट्रैक कर रहे हैं कि यह सुरक्षा कितने समय तक चलती है। उन बंदरों पर ही वैक्सीन का ट्रायल किया गया है। शोध का नेतृत्व करने वाले बोस्टन में बेथ इज़राइल डेकोनेस मेडिकल सेंटर के वायरोलॉजिस्ट डॉ. डैन बार्क ने कहा कि ऐसी अवधि के निर्धारण के लिए शोध में समय लगता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.